हम में से शायद ही कोई होगा जिसने बचपन में ये दाँट ना खाई हो। बच्चों के अलावा हर किसी को लगता है की राय सिर्फ़ बड़ों की पूछी जानी चाहिए। बच्चों से क्या पूछना ? बच्चे तो बहुत छोटे होते हैं , उन्हें क्या पता ? बच्चों का काम है खेल कूद करना , पढ़ाई करना , वक़्त पर खाना खाना , और माँ बाप को बिना परेशान किए " अच्छे बच्चे " बनकर रहना। बस। ये कोई नहीं सोचता की शायद उनके भी कुछ समझ में आता होगा , शायद वो भी कुछ सुझाव दे सकें जो वाक़ई में बड़े काम के हों ... पर ना साहब , हम बड़े , और ख़ासकर हम से भी बड़े , सिर्फ़ इतना मानकर चलते हैं की बच्चों को अनुबव काम होनेसे उनमें सूझ बूझ , परिपक्वता हो ही नहीं सकती ! अब पिछले हफ़्ते की ही बात ले लीजिए। हम छुट्टियों के बाद बंबई से लौट रहे थे और हम लैंडिंग के बाद हमारे समान की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमारे साथ हमारे काफ़ी सह प्रवासी भी इस इंतज़ार में थे कि कब समान आए और कब वे निकले घर ...
Seeing the extraordinary in the ordinary